कृष्ण और राधा ये दो नाम ऐसे हैं जो मन-मस्तिष्क को पवित्र कर देते हैं, इस नाम की महिमा किसी अमृत से कम नहीं है. वैसे तो ये दोनों नाम पूरे ब्रह्मांड में एक साथ लिए जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में एक जिला ऐसा भी है जहां राधा नाम कृष्ण नाम से पहले आता है।
ये एक ऐसा स्थान है जहां के कण-कण में भगवान श्री कृष्ण का वास है लेकिन फिर भी जब यहां सुबह होती है तो वो राधा नाम से होती है यहां रात भी राधा के नाम से ही होती है. कभी-कभी तो ये नगरी असमंजस पैदा कर देती है कि इसे धर्म की नगरी कहें या फिर प्रेम की नगरी।
इस नगरी में धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं का एक ऐसा संयोग है जिसकी प्रामाणिकता को मिथक कहना असंभव है। देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 187 कि.मी. दूरी पर बसा ये पवित्र और आलौकिक स्थान जिसके वातावरण में भी राधा नाम की गूंज सुनाई देती हो.
जी हां हम बात करने जा रहे है, मथुरा की. यमुना के तट पर बसी एक ऐसी नगरी जिसकी ख्याति हजारों साल पुरानी है. जिसका धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्व है.
धार्मिक रूप से प्रसिद्ध मथुरा नगरी:
भारतवर्ष के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से मथुरा जो श्री कृष्ण की जन्मस्थली के नाम से प्रसिद्ध है. जहां हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक जाते हैं. भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी ये धरती संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत संगम है.
मथुरा के त्योहार, ऐतिहासिक मंदिरों की सुंदरता, श्री कृष्ण की लीलाएं और यमुना का शांत किनारा पर्यटकों का मन मोह लेता है. मथुरा में कुछ ऐसे स्थान भी है, जिनकी ख्याति देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैली है.
बांके बिहारी मंदिर में दर्शन से व्याधियां छूमंतर:
सबसे पहले हम बात करेंगे बांके बिहारी मंदिर की. इस मंदिर में स्थित भगवान श्री कृष्ण की आलौकिक मूर्ति श्री कृष्ण के बाल रूप को दर्शाति है. मान्यताओं है, कि जो भी श्रद्धालु इस मंदिर में श्री कृष्ण के बाल रूप का दर्शन करने आता है. भगवान कृष्ण उसके सारे कष्ट हर लेते हैं. मान्यता तो ये भी है, कि जो भी श्रद्धालु श्री कृष्ण की आंखों में एकटक निहार लेते हैं, श्री कृष्ण उनके साथ चल देते हैं. इसी कारण मंदिर के पुजारी प्रत्येक क्षण मूर्ति के सामने लगे पर्दे को लगाते और हटाते रहते हैं.
द्वारिकाधीश मंदिर में दिखती है भारत की कला:
द्वारिकाधीश मंदिर मथुरा के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मंदिर है. जहां की शिल्पकला और चित्रकारी पर्यटकों का मन मोह लेती है. जहां जाकर लगता है, कि स्वंय श्री कृष्ण वहां आज भी वास करते हैं. यह मंदिर भी भगवान श्री कृष्ण के साक्षात् स्वरूप को दर्शाता है. द्वारिकाधीश मंदिर की वास्तुकला और मूर्तियों की सुंदरता चित्रकला का एक अद्भुत नमुना है. इस मंदिर में प्रत्येक दिन श्रद्धालु हजारों की तादात में दर्शन के लिए उमड़ते हैं.
श्री कृष्ण जन्मभूमि मोह लेती है मन:
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह वह स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. कहा जाता है, कि यहां श्री कृष्ण के मामा कंस के द्वारा बनवाया गया पत्थर का कारावास आज भी मौजूद है. जिसे देखने के लिए हर साल दूर-दूर से श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि मंदिर में आज भी वो छोटा सा हिस्सा मौजूद है जहां श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था. जो बहुत ही खूबसूरत तरीके से बनाया गया है. यहां श्री कृष्ण जी की सफेद रंग बहुत सुंदर मूर्ति है, जिसे देखकर ऐसा लगता है की श्री कृष्ण जी यहां साक्षात् रूप में अपने भक्तों को देख रहे हैं.
प्रेम मंदिर शांति का दूसरा उदाहरण:
भगवान श्री कृष्ण और श्री राधारानी के अटूट प्रेम को समर्पित यह मंदिर अद्भुत सौंदर्य का एक नमूना है. मथुरा दर्शन के लिए आए श्रद्धालु सबसे पहले अपनी हाजिरी प्रेम मंदिर में ही लगाते हैं. प्रेम मंदिर में संध्या के समय होने वाले लाइटिंग शो पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं. प्रेम मंदिर के आंतरिक हिस्से में श्री राधा-कृष्ण और श्री राम के साथ माता सीता जी की मूर्तियां हैं. इस प्रेम मंदिर में श्री कृष्ण द्वारा की गई सारी लीलाओं को चित्र और कृतियों द्वारा बखुबी उकेरा गया है।
निधि वन जो कारए साक्षात राधा-कृष्ण के दर्शन:
जब हम आपको मथुरा का दर्शन करा ही रहे हैं तो उस स्थान के बारे में भी जरूर बताएंगे जहां भी श्री राधारानी और श्री कृष्ण के दर्शन होते हैं. निधिवन पवित्र स्थान होने के साथ-साथ एक रहस्यमयी धार्मिक स्थल भी है. मान्यताओं के अनुसार निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधा आज भी आधी रात के समय रास-लीलाएं खेलते हैं. फिर उसके बाद निधिवन के परिसर में बने हुए रंग महल में रात्रि विश्राम करते हैं. कहा जाता है, कि रंग महल में आज भी प्रसाद के रूप में श्री कृष्ण और श्री राधा के लिए माखन और मिश्री का भोग लगाया जाता है. साथ ही साथ सोने के लिए बिस्तर तैयार किया जाता है. जो सुबह होने पर ऐसा लगता है कि मानो रात्री में कोई उसपर विश्राम करके और प्रसाद ग्रहण करके गया हो. निधिवन लगभग ढाई एकड़ के क्षेत्र में फैले है. इस वन में पेड़ों की डालियां ऐसी प्रतीत होती हैं कि, मानो यही पेड़ रोज़ रात में गोपियों का रूप धारण करते हों और श्री कृष्ण के साथ मिलकर रास-लीला रचाते हों.
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