कलावा जिसे आम बोल-चाल की भाषा में मौली कहा जाता है। कलावा का प्रयोग सनातन धर्म में हर पूजा-पाठ में और शुभ कामों में किया जाता है।
लाल और पीले रंग का ये सूती धागा जिसे हम कलावा कहते हैं ये हमारे जीवन में खास महत्व रखता है। कलावा को रक्षासूत्र भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हाथों में कलावा बांधने से त्रिदेव यानि ब्रहमा, विष्णु और महेश के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
कलावा बांधने का धार्मिक महत्व
कलावा के बारे में पुराणों में कहा जाता है की, जिस समय देवराज इंद्र वृत्रासुर नाम के असुर से युद्ध लड़ने के लिए जाने वाले थे ठीक उस समय इंद्र की पत्नी ने उनके सीधे हाथ की कलाई पर कलावा यानि रक्षा सूत्र बांध दिया था।
जिसके बाद देवराज इंद्र ने वृत्रासुर नामक असुर पर जीत हासिल कर वापस देवलोक लौट आए, इसके बाद से कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले कलावा बांधने की परंपरा शुरू हो गई।
कलावा बांधने के पीछे का वैज्ञानिक महत्व
हम सभी जानते हैं कि, हमारे शरीर की ज्यादातर नसें हाथों की कलाइयों से जुड़ी रहती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार कलावा को हाथ की कलाई में बांधने से वात, पित्त और कफ, ब्लड प्रेशर, शुगर, दिल से जुड़ी बीमारियों में आराम मिलता है।
कलावा बांधने और उतारने का सही तरीका
कलावा बांधते समय हमें इसे 3 बार हाथों की कलाई में लपेटना चाहिए। कलावा को पुरुष, कुंवारी लड़कियों के सीधे हाथ पर और शादीशुदा महिलाओं के उल्टे हाथ पर बांधा जाता है।
हिन्दु एक बात का विशेष ध्यान रखें हाथ पर बंधे पुराने कलावा को उतारने के बाद उसे इधर-उधर ना फेंकें बल्कि उसे पीपल के पेड़ के नीचे रख दें, या फिर उसे नदी में प्रवाहित कर दें।
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