वास्तु शास्त्र एक पुरानी विद्या है, वास्तु शास्त्र से घर, भवन, कार्यालय और अन्य निर्माणों में ऊर्जा का सही संतुलन और प्रवाह बना रहता है. घर का मंदिर भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है, बल्कि परिवार के सदस्यों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाने का भी एक महत्वपूर्ण साधन है.
घर के मंदिर को सही स्थान पर और वास्तु शास्त्र के अनुसार स्थापित करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि अगर मंदिर का स्थान वास्तु दोष से प्रभावित होता है, तो इसका नकारात्मक प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ सकता है.
पवित्रता और ऊर्जा का केंद्र घर का मंदिर
घर के मंदिर में पूजा की सामग्री और देवताओं के चित्र या मूर्तियों का स्थान बहुत पवित्र होता है, इसलिए वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मंदिर में कुछ चीजें रखने से न केवल नकरात्मक ऊर्जा का संचार करती है, बल्कि यह पूजा के वातावरण को भी बिगाड़ भी सकती है. इसलिए, घर के मंदिर में कुछ विशेष चीजें नहीं रखनी चाहिए.
आइए जानते हैं कि घर के मंदिर में क्या चीज़ें नहीं रखनी चाहिए.
रसोई से जुड़ी वस्तुएं को रखें दूर
घर के मंदिर में कभी भी रसोई से जुड़ा सामान जैसे लोहे का तवा, बर्तन, मसाले आदि नहीं रखने चाहिए, क्योंकि वास्तु शास्त्र के अनुसार ये वस्तुएं नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सकती हैं और पूजा के स्थान की पवित्रता को नष्ट कर सकती हैं.

कार्यलय से जुड़ी चीजों का ना करें इस्तेमाल
घर के मंदिर में किसी भी प्रकार के ऑफिस या कार्य से जुड़ें सामान जैसे लैपटॉप, फाइलें, कलम आदि नहीं रखना चाहिए. वास्तु शास्त्र के अनुसार ये चीजें काम और तनाव से जुड़ी होती हैं जिसके कारण मंदिर का वातावरण अपवित्र हो सकता है.

मुरझाएं हुए फूलों से फैलती है नकारात्मकता
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मंदिर में मुरझाए हुए फूल या चढ़ावे रखना अशुभ माना जाता है. कहा जाता है, कि ऐसे फूलों से ऊर्जा का प्रवाह बाधित होता है और वे मंदिर के पवित्र वातावरण को खराब कर सकते हैं.
स्वच्छ पूजा सामग्री का करें इस्तेमाल
घर के मंदिर में पूजा की सामग्री- जैसे दीपक, अगरबत्तियां, फूल, प्रसाद आदि, हमेशा व्यवस्थित और साफ-सुथरे तरीके से रखें. वास्तु शास्त्र के अनुसार गंदे सामान को मंदिर में रखने से नकारात्मकता उत्पन्न होती है।
जूठा भोजन या पानी को रखें दूर
वास्तु के अनुसार घर के मंदिर में कभी भी जूठा भोजन या पानी नहीं रखना चाहिए. यह अपवित्रता का प्रतीक होता है और पूजा की प्रक्रिया को प्रभावित करता है.

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