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कहां से निकली सियासत में बगावत के शिक्षा की सीख? जानिए एकनाथ शिंदे के बाद अजित पवार किसके नक्शे कदम पर चले

भारतीय राजनीति में बगावत की कहानी हर दिन नए आयाम को जन्म दे रही है। महाराष्ट्र में साल 2022 के बाद अब 2023 में एक बार फिर बगावत देखने को मिल रही है और ये बगावत अब सीधे घर पर कब्जा कर रही है।

Mayank Shukla by Mayank Shukla
07/07/2023
in राजनीति
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कहां से निकली सियासत में बगावत के शिक्षा की सीख? जानिए एकनाथ शिंदे के बाद अजित पवार किसके नक्शे कदम पर चले

महाराष्ट्र की सियासत में इस वक्त घमासान मचा हुआ है, यहां पर कुर्सी पर काबिज रहने के लिए शह और मात का खेल खेला जा रहा है।

शिवसेना के बाद अब महाराष्ट्र में एक और पार्टी में इस वक्त घमासान मचा हुआ है, NCP में चाचा और भतीजे की बीच वर्चस्व की जंग जारी है।

अजित पावर के साथ मिलकर कुल 9 विधायकों ने सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार को अपना समर्थन दिया और मंत्री पद की शपथ भी ले ली।

शपथग्रहण के बाद अजित पवार ने साफ कहा कि, NCP के रूप में ही वो शिंदे सरकार में शामिल हुए हैं ये कोई गुट नहीं है और आने वाला चुनाव भी हम NCP के नाम और सिंबल के साथ ही लड़ेंगे।

भतीजे के इस बयान के बाद चाचा शरद पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और इस नूरा कुश्ती पर बयान देते हुए कहा कि NCP के विधायकों को सरकार में शामिल होने के कदम को पार्टी की गाइड लाइन के खिलाफ बताया।

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शरद पवार ने साफ कहा कि ये साफ-साफ NCP के खिलाफ बगावत है और ऐसा करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

एक तरफ जहां NCP के अध्यक्ष शरद पवार ने शिंदे सरकार में शामिल होने को बगवात करार दिया तो दूसरी तरफ भतीजे अजित पवार ने इसे पार्टी का स्टैंड बताया।

चाचा-भतीजे के तल्ख बयान बाजी के बाद महाराष्ट्र में एक बार फिर राजनीतिक बवंडर के उठने की संभावना प्रबल हो गई है और विपक्ष के लिए मुश्किलों का द्वार थोड़ा और चौड़ा होता दिखाई दे रहा है।

NCP भी उसी रास्ते पर चल पड़ी है जिस पर आज के 2 साल पहले शिवसेना चल पड़ी थी।

NCP पर कब्जे को लेकर उड़ान दिल्ली में चुनाव आयोग तक पहुंच चुकी है और अजित पवार ने चाचा शरद पवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी से धक्का देकर खुद मुकुट सिर पर रख लिया है।

चक्रव्यूह भेदने में माहिर शरद पवार

महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार की पावर और राजनीतिक समझ आंकना सबके लिए हास्यास्पद होगा क्योंकि शरद पवार राजनीति में रचे चक्रव्यूह को तोड़ने में माहिर माने जाते हैं।

फिलहाल अभी तक भतीजे अजित पवार के रचे इस सियासी चक्रव्यूह में शरद पवार कुछ फंसे से नजर आ रहे हैं।

अब देखना होगा कि हर बार की तरह अपने सियासी चाल से दिग्गज नेताओं को धूल चटाने वाले शरद पवार इस चक्रव्यूह को कब तोड़ते हैं।

शरद पवार रास्ता निकालने के लिए बैठक पर बैठक किए जा रहे हैं और उन्होंने इस बात को भी माना है कि NCP में वो परिस्थितियां बन चुकी हैं जो शिवसेना में बनी थीं।

आपको बता दें कि पिछले साल शिवसेना में भी उद्धव ठाकरे के खिलाफ एकनाथ शिंदे ने बगावत की अगुआई की थी।

इस बगावत का असर ये रहा कि उद्धव ठाकरे पहले सत्ता से गए और फिर पार्टी के नाम के साथ निशान से भी हाथ धोना पड़ा।

शरद पवार के सामने अब अपनी पार्टी को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। सियासत में बगावत का इतिहास तो सभी को पता है लेकिन अब बगावत ऐसी है कि सीधे घर पर कब्जा किया जा रहा है।

शिवसेना के बाद अब NCP को अपना नाम और निशान बचाने के लिए जद्दो जहद करनी पड़ रही है।

साल 2022 और 2023 में बगावत की इन दो घटनाओं रूपरेखा कहां से आई तो इसका जवाब जानने के लिए बिहार की तरफ देखना होगा।

बिहार से उठी बगावत की बयार

सियासत में बगावत का जन्मदाता बिहार है कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। LJP (लोक जनशक्ति पार्टी) के अध्यक्ष और राजनीति के मौसम वैज्ञानिक माने जाने वाले रामविलास पासवान ने 2019 में अपनी विरासत अपने बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी।

रामविलास पासवान ने पार्टी की कमान अपने बेटे जमुई से सांसद चिराग पासवान को सौंप दी। चिराग पासवान ही LJP संसदीय दल के नेता भी बनाए गए।

असली खेल शुरू हुआ साल 2021 में जब चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस ने अपने भतीजे के खिलाफ बगावत का शंखनाद कर दिया।

चिराग पासवान पहले संसदीय दल के नेता के पद से हटाए गए और बहुमत के आधार पर खुद LJP संसदीय दल के नेता बन गए। पशुपति पारस यहीं नहीं रुके उन्होंने LJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बुलाई और खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया।

पशुपति पारस ने एक तरफ भाई के आर्दश का गुणगान करते रहे और दूसरी तरफ भतीजे की कुर्सी हड़प ली।

चिराग पासवान की चाचा पशुपति पारस के साथ सुलह की हर कोशिश की लेकिन वो भी नाकाम रही।

पशुपति और चिराग दोनों ने ही पार्टी के नाम और सिंबल पर अपना दावा ठोका और नतीजे ये रहा कि चुनाव आयोग में चिराग लड़ाई हार चुके थे और अपने पिता की बनाई हुई पार्टी पर अधिकार से वंचित रह गए।

चुनाव आयोग से लड़ाई हराने के बाद चिराग पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास का गठन किया।

पशुपति के नक्शे पर शिंदे भी चले

एकनाथ शिंदे ने जब महाराष्ट्र में उद्ध ठाकरे से बगावत की तो उन्होंने भी पशुपति पारस का फॉर्म्यूला अपनाया।

20 जून 2022 को एकनाथ शिंदे ने उस वक्त के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया।

शिंदे करीब 24 विधायकों के साथ गुजरात के सूरत से लेकर असम के गुवाहाटी तक का टूर कर लिया। सूरत में जब एकनाथ शिंदे ने कैंप लगाया तो उद्धव ठाकरे पाले में शामिल विधायक एक-एककर उनसे अलग होकर शिंदे के गुट में शामिल हो गए।

एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे के सबसे करीबी नेताओं में से एक थे और शिवसेना समर्थकों को ये उम्मीद थी कि शिंदे जल्द ही मान जाएंगे लेकिन ये किसी को नहीं पता था कि शिंदे उद्धव ठाकरे पर ही भारी पड़ेंगे।

शिंदे गुवाहाटी पहुंचने के बाद भी मौन साधे रखा और विधायकों के साथ तस्वीर जारी कर मुंबई में MVA का पारा चढ़ाते रहे।

एकनाथ शिंदे और उनके साथ आए सभी विधायकों ने एक सुर में कहा कि बाला साहेब ठाकरे के आदर्शों के बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

ये भाषा उन दिनों की याद दिला दी जब पशुपति पारस ने LJP पर कब्जा करते वक्त कहा था कि वो अपने भाई के आदर्शों की रक्षा करने के लिए काम कर रहे हैं।

एकनाथ शिंदे ने अपने साथ विधायकों और BJP के साथ आए विधायकों के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली, जिसके बाद बयान जारी करते हुए कहा कि हमारा गुट ही असली शिवसेना है।

उद्धव ठाकरे जब तक इसका मतलब समझ पाते बाजी उनके हाथ से निकल चुकी थी। 20 जून को शिवसेना में बगावत शुरू हुई और 11 जुलाई चुनाव आयोग में उद्धव ठाकरे की तरफ से कैविएट दाखिल की गई।

एकनाथ शिंदे ने उद्धव गुट के विधायकों को पहले अपने साथ मिलाया और फिर शिवसेना के नाम और सिंबल को भी बहुमत के आधार पर हासिल कर लिया।

इसी के साथ उद्धव ठाकरे को अपने पिता की पार्टी से हाथ धोना पड़ा और उद्धव ठाकरे ने भी शिवसेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे के नाम से नई पार्टी बनाई।

NCP को भी लगी LJP वाली हवा

पशुपति पारस की हवा साल 2022 में एकनाथ शिंदे को लगी तो साल 2023 में NCP को लग गई है। बगावत का केवल महीना और साल बदला है लेकिन स्क्रिप्ट पूरी की पूरी वही है।

अजित पवार ने भी पहले विधायक दल की बैठक बुलाई और खुद को NCP का अध्यक्ष नियुक्त किया और फिर शिंदे सरकार को समर्थन देकर महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के रूप में गद्दी पर सवार हो गए।

उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अजित पवार ने मीडिया को याद किया और पार्टी के नाम के साथ सिंबल को अपना बता दिया।

इस घटना के बाद से फिर से एक बार पुराने दिन ताजा हो गए जब शरद पवार ने प्रफुल्ल पटेल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

दरअल प्रफुल्ल पटेल ने जयंत पटेल को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने का ऐलान किया था। उस दौरान भी प्रेस वार्ता के दौरान अजित पवार ने कहा था कि NCP के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार का फैसला अकाट्य है।

Tags: Ajit PawarBIHARNCPSharad Pawar
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