ऐतिहासिक खीर भवानी के मंदिर का विशेष महत्व बताया जाता है ये कश्मीर की खूबसूरत पहाड़ियों की बीच स्थित हैं। कश्मीरी पंडितों की आराध्य माता महारज्ञा देवी को ये मंदिर समर्पित है। इस मंदिर में यह केवल खीर का ही भोग लगाया जाता है।
खीर भवानी मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है कि यह माता सीता हरण से परेशान दुखी होकर लंका से कश्मीर आ गई थी। आइए आपको बताते हैं खीर भवानी मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तत्व के बारे में।
माता का परम भक्त रावण था
एक रोचक कथा मंदिर की स्थापना को लेकर है ऐसी मान्यता है कि खीर भवानी का मंदिर पहले लंका में था और रावण माता का परम भक्त था देवी मां भी रावण की भक्ति पूजा-पाठ और जब और तब से काफी प्रसन्न थी ,मगर जब कुछ समय बाद रावण को बुरी आदतें लग गई तो माता रावण से नाराज रहने लगी।
माता रावण से इसलिए नाराज थी क्योंकि जब रावण ने वनवास के दौरान माता सीता का अपहरण कर लिया था तो देवी इस घटना से काफी नाराज हुए और उसे स्थान को छोड़ दिया।मां देवी ने राम भक्त हनुमान से अपनी मूर्ति लंका के बजाय किसी और स्थान पर स्थापित करने को कहा तब हनुमान जी ने मूर्ति को लंका से निकालकर कश्मीर के तुलतुल में स्थापित कर दिया।
चमत्कारी कुंड मंदिर में हैं।
चमत्कारी कुंड विश्व विख्यात है इस क्षेत्र में जब भी बड़ी आपदा आने वाली होती है तो इस कुंड का रंग काला या लाल पड़ जाता है। पानी का रंग बदलने से पता चल जाता है स्थानीय लोगों को कि कोई विपत्ति आने वाली है।
कश्मीर में जब बाढ़ आई थी, तब इसका रंग काला हो गया था।कारगिल युद्ध के समय कुंड का रंग लाल हो गया था।
हरा रंग धारा 370 हटने पर हो गया था । इनको असली में महारज्ञा देवी के नाम से जाना जाता है।
केवल खीर का ही मां को भोग लगाया जाता है
पूजा की जगह के रूप में भगवान राम ने अपने निर्वासन के समय इस मंदिर का इस्तेमाल किया था। मां को केवल खीर का भोग ही लगाया जाता है।माता अपने भक्तों से प्रसन्न रहते हैं यदि वह उनको खीर का भोग लगाते हैं तो।साथ ही प्रसाद के रूप में केवल खीर ही वितरण की जाती है।चिनार के पेड़ मंदिर के चारों ओर हैं और नदियों की धाराएं भी बहती रहते हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती
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