“जो भरा नहीं भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं” – कवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां उनकी दूरदर्शिता को साबित करती हैं। आप सोच रहे होंगे कैसे? तो बात ऐसी है कि बांग्लादेश कभी भारत का हिस्सा हुआ करता था। एक समय यह भूमि हमारी संस्कृति और इतिहास का अभिन्न हिस्सा थी। लेकिन आज, वही देश हमारी आस्था और अस्मिता को चोट पहुंचा रहा है। और इसका सबसे बड़ा कारण क्या है? हमारा स्वार्थ और हमारी उदासीनता।
हम इतने स्वार्थी हो चुके हैं कि हमारे भीतर का भारतीय कहीं खो सा गया है। हम अपनी भारतीयता को, अपने स्वदेश प्रेम को धीरे-धीरे मार रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हमने अपनी पहचान को कमजोर किया है और इसे दूसरों के हाथों में जाने दिया है।
हमारे पड़ोसी देश में, जहां आज हमारे देवी-देवताओं, संतों और पुजारियों पर अत्याचार हो रहे हैं, वहां की स्थिति यह दिखाती है कि हमने अपने स्वाभिमान और साहस को किस हद तक गिरा दिया है। हिंदुओं पर हो रहे इन अत्याचारों को हम चुपचाप देख रहे हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो। यह सब दर्शाता है कि हमारा स्वार्थ हमारी प्राथमिकता बन गया है।
हम अक्सर गंगा-जमुनी तहज़ीब की बातें करते हैं और एकता का गुणगान करते हैं। लेकिन, क्या यह एकतरफा नहीं हो गया है? एक विशेष समुदाय के लोग इसे केवल दूसरे पक्ष पर लागू करना चाहते हैं। यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है।
हाल ही में, बांग्लादेश में ISKCON के पुजारी चिन्मयानंद पर जो बीता, वह हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। सोचिए, अगर भारत में किसी विशेष समुदाय से जुड़े धार्मिक व्यक्तियों के साथ ऐसा कुछ होता, तो पूरे देश में हिंसा और आगजनी का माहौल बन जाता। लेकिन, हिंदुओं पर हुए इस जघन्य अत्याचार पर हमारी चुप्पी हमारे पतन को दिखाती है।
बांग्लादेश में ISKCON संस्था ने भी अपने अनुयायियों और पुजारियों को यह सलाह दी है कि, “वे तिलक लगाकर, भगवा वस्त्र पहनकर, या तुलसी की माला पहनकर बाहर न निकलें”. यह वह संस्था है, जिसके करोड़ों अनुयायी पूरी दुनिया में हैं। लेकिन आज, यह भी केवल अपने आर्थिक स्वार्थ में जुटी दिखाई देती है।
ISKCON कोलकाता के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने कहा कि, “बांग्लादेश में मौजूद सदस्यों और पुजारियों को अपने बचाव का उपाय खुद करना चाहिए। उन्हें भगवा कपड़े और माथे पर तिलक से बचना चाहिए।” सोचिए, यह कैसी विडंबना है कि जिस देश में 150 करोड़ की आबादी में अधिकांश लोग सनातन धर्म का पालन करते हैं, वहां हमें अपनी पहचान छिपानी पड़ रही है।
यह हमारे लिए शर्मिंदगी की बात होनी चाहिए। बांग्लादेश में प्रभु चिन्मयानंद और अन्य कई पुजारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनके वकील को बांग्लादेशी कट्टरपंथियों ने इतना मारा कि वह अब ICU में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं।
फिलहाल, भारत में कुछ संतों और नेताओं ने इस मुद्दे पर आवाज उठाई है। उन्होंने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बांग्लादेश में हो रहे हिंदू विरोधी अत्याचारों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं
बदी राजनीति करने का प्रयास देश के नेताओं पर इस तरीके से चढ़ चुका है जैसे मानो वह पागल खाने से निकाल कर आए हो आज बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर के किसी भी नेता का देश के प्रधानमंत्री गृहमंत्री रक्षा मंत्री जीवन बड़े-बड़े हिंदूवादी संगठन चलाने वाले लोगों के मुंह से एक शब्द नहीं निकल रहा विश्व हिंदू परिषद हो आरएसएस हो या अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद हो या अन्य हिंदूवादी संगठनों के धर्म के ठेकेदार हो किसी के मुंह से सीख नहीं निकल रही बांग्लादेश में हिंदुओं का हाल इतना बड़ा है वर्तमान में जिसको कमेंट लिखते समय शर्म महसूस हो रही है पिता के सामने बेटी का बलात्कार कर जा रहा है भाई के सामने बहन का बलात्कार किया जा रहा है और बाप बेटे के सामने उनकी मां का बलात्कार किया जा रहा है यह ज्यादा मानसिकता के लोग हिंदू की लड़कियों को सरिया माता-पिता के सामने सामूहिक बलात्कार करके मौत की घाट उतार रहे हैं क्या भारत में रहने वाले हिंदूवादी संगठन और हिंदूवादी नेताओं का खून पानी बन चुका है। मैं भारत की वर्तमान सत्ता से गुहार लगाता हूं बांग्लादेश में रह रही हिंदुओं के लिए शरण देने की प्रक्रिया तुरंत लागू की जाए और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री से तुरंत बात करके बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं को सुरक्षा प्रदान कराई जाए बांग्लादेश का मुख्यमंत्री गूंगा बहरा अंधा बना बैठा है वर्तमान में।