दिल्ली: भारत में इस वक्त बदलाव को हर कोई महसूस कर रहा है। अच्छी शिक्षा, सभ्य वातावरण, आतंकवाद रहित समाज और विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रकचर।
वो कहते हैं ना कि जब तेजी से तरक्की कर रहें हों तो आपकी तरक्की में बाधा बनने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ जाती है। इस वक्त भारत में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है।
भारत की देवभूमि माने जाने वाले राज्य उत्तराखंड में भी इस वक्त कुछ ऐसा देखने को मिला है जिससे ये साफ कहा जा सकता है कि ऐसा करने की हिम्मत सिर्फ दो वजह से ही लोगों में आ सकती है, पहला जब देश की कानून व्यस्था की परवाह न हो और दूसरा जब आपको देश के संविधान को मानते न हों।
समुदाय विशेष के लोगों की तरफ से हल्द्वानी में जो किया गया को एक तरह का आंतरिक आतंकवाद है, जो ये दिखाता है कि आप बाहर से आने वाले दुश्मनों का सामना आसानी से कर सकते हैं लेकिन देश के अंदर छिपे दुश्मनों का सामना कैसे करेंगे।
यहां सोचने वाली बात ये है कि समुदाय विशेष का माइंड वॉश किस हिसाब से किया गया कि कोर्ट के आदेश का पालन करने वाली कार्रवाई में बाधा इस हिसाब से डाला गया कि पूरे देश में माहौल खराब हो गया।
देवभूमि सहित पड़ोसी राज्यों में कर्फ्यू लगाने पड़े हैं, अब हम आपको थोड़ा सिलसिलेवार तरीके से एक-एक दिन की घटना को बताते हैं। दरअसल मालिक का बगीचा की 2 एकड़ के करीब जमीन को नजूल
की जमीन बताते हुए 29 जनवरी को प्रशासन और नगर निगम की संयुक्त टीम ने वहां बने पक्के निर्माण को गिरा दिया था।
इस अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई के दौरान प्रशासन ने धार्मिक भावनाओं का ध्यान में रखते हुए मदरसे और मजार को 29 जनवरी के दिन नहीं तोड़ा, इसके बाद दूसरे दिन टीम ने मौके पर पहुंचकर तारबंदी कर दी।
30 जनवरी के दिन शाम को प्रशासन की ओर से अतिक्रमणकारियों को नोटिस दिया गया कि एक फरवरी तक दोनों निर्माण हटा लें। नोटिस देने के बाद 2 फरवरी तक प्रशासन शांत रहा।
3 फरवरी को वनभूलपरा क्षेत्र के लोगों ने नगर निगम कार्यालय पर पहुंचकर अपना विरोध अधिकारियों के सामने दर्ज कराया। विरोध का कोई असर देखने को नहीं मिला और 4 फरवरी सुबह 6 बजे नगर निगम ने अतिक्रमण को तोड़ने का फैसला किया।
4 फरवरी को जब प्रशासन ने अपनी कार्रवाई की तो 12 से अधिक महिलाओं ने उस स्थान दुआओं को पढ़ना शुरू कर दिया।
वनभूलपुरा थाना क्षेत्र की SP प्रह्लाद नारायण मीणा की मौजूदगी में प्रशासन और नगर निगम की दो टीमों ने दोनों अवैध निर्माण ध्वस्त करने का काम जैसे ही शुरू किया तो उन पर पेट्रोल बम, गोलियां और पत्थर चलाए गए।
स्थानीय लोगों की तैयारी की बात करें तो समुदाय विशेष की तरफ से घर की छतों पर पत्थर, टंकियों में पट्रोल और कारतूस तो उस दिन से ही रख लिए गए थे जब कोर्ट अवैध कब्जे को हटाने का आदेश दिया था।
परिवार का एक-एक सदस्य पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर आग, पत्थर और गोलियां बरसा था और देश के कानून की धज्जियां उड़ा रहा था। चिंतनीय ये है कि समुदाय विशेष के प्रतिनिधित्व करने वाले लोग अपनी संख्या केवल पूरे भारत में 14% ही बताते हैं और अगर ऐसा है तो क्या महज 14% लोग देश में अरजाकता फैलाने की हिम्मत कहां से लाते हैं और इनके पीछे कौन सी ताकत है ये जानना बेहद जरूरी है।
“देश मर गया तो कहो जिंदा कौन रहेगा अगर जिंदा रह भी गया तो जिंदा कौन कहेगा” इसे सोचना अब हम सबकी जिम्मेदारी है, सच तो ये है कि समरकंद और फरगना से भगाए लोगों ने हमारे भारत के इतिहास में अपनी जगह बना ली और आज हमें उनकी झूठी वीरताओं की कहानियां इतिहास में पढ़ाई जाती हैं।
अपने देश में शौचालय का निर्माण नहीं कर पाने वाले भारत में मीनारों और किलों का निर्माण कैसा करा सकते हैं इस रहस्य से पर्दा अभी तक नहीं उठ सका है।
कांग्रेस सांसद इमरना प्रतापगढ़ी, अकबरुद्दीन औवैसी और असदुद्दीन ओवैसी जैसी सोच रखने वाले भारत को एक बार फिर गुलामी या फिर इसके टुकड़े करने की सोच को जन्म दे रहे हैं।
ये तब है जब ये अपनी संख्या को देश में महज 14% ही बताते हैं अगर इनकी संख्या 50% होती है तो ये शायद सनातनियों को इस देश में रहने ही न दें।
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