उमर अब्दुल्ला को अगर इस वक्त राजनीतिक भाषा में ‘यू-टर्न पॉलिटीशियन’ का जाए तो गलत नहीं होगा। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहले तो पीएम मोदी और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर के विकास की कसम खाई फिर उन्होंने ये साबित कर दिया कि उन्हें ‘यू-टर्न पॉलिटीशियन’ क्यों कहा जाता है?
हम उमर अब्दुल्ला को ‘यू-टर्न पॉलिटीशियन’ से क्यों संबोधित कर रहे हैं इसका सीधा और ताजा उदाहरण है जम्मू-कश्मीर की विधानसभा हंगामा, जहां विधायकों को शांत करने के लिए मार्शल बुलाना पड़ा।
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर का विधानसभा सत्र 4 नवंबर को शुरू हुआ था और चौथे हमें विधानसभा के अंदर हाथापाई देखने को मिल गई। असल में सत्र में तीसरे दिन एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें धारा 370 को वापस से जम्मू-कश्मीर में बहाल करने की मांग की गई।
जैसा कि आप जानते हैं कि, 5 अगस्त 2019 में संसद में जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया था और इसे 2 हिस्सों में बांट कर केंद्र शासित प्रदेश में शामिल कर लिया था।
जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय दल लगातार पुरानी व्यवस्था को लागू करने की मांग को हमेशा करते रहे हैं। केंद्र सरकार ने आश्वासन भी दिया था कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से दिया जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय दल, कांग्रेस के नेता समय-समय पुरानी व्यवस्था को लागू करना का दबाव केंद्र सरकार पर बनाते रहते थे और पहले स्टेटहुड फिर चुनाव कराने की आवाज बुलंद कर रहे थे लेकिन केंद्र सरकार ने इसे हर बार नामंजूर कर दिया था।
अब चुनाव के बाद, जम्मू-कश्मीर में नई सरकार का गठन हो गया है, लग रहा था कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देगी, लेकिन जिस तरह से आज विधानसभा में हंगामा हुआ उसे तो देखकर यही लग रहा है कि ये मामला टेंढ़ी खीर ही साबित होगा और जम्मू-कश्मीर के लोगों को अभी लंबा इंतजार करना पड़ेगा।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रस्ताव पर बवाल:
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में तीसरे दिन उपमुख्यमंत्री सुरिंदर कुमार चौधरी ने अनुच्छेद 370 से जुड़ा प्रस्ताव सदन की पटल पर लाया था. उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने जहां प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया वहीं बीजेपी ने इसका जमकर विरोध किया।
बीजेपी विधायकों ने प्रस्ताव के विरोध में 5 अगस्त जिंदाबाद के नारे भी लगाए, इस दौरान बीजेपी नेताओं ने कहा कि धारा 370 को हटाना फाइनल है, उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की जनता को भटकाने, तानवपूर्ण माहौल बनाने और ब्लैकमेल करने के लिए प्रस्ताव पास किया।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पास किए गए प्रस्ताव में कहा गया है, ये विधानसभा विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटी की पुष्टि करती है, जिसने जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान, अधिकारों और संस्कृति जम्मू-कश्मीर के लोगों की रक्षा की।
सदन जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों को जबरन खत्म पर चिंता व्यक्त करता है। विधानसभा में चुन कर आए नेताओं के साथ ये सदन जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करता है। जिससे राज्य में कानून व्यवस्था के संवैधानिक व्यवस्था भी बहाल हो सके।
उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव गठबंधन के तहत लड़ा था।
उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने मैनिफेस्टो में धारा 370 को वापस से लागू करने और पूर्ण राज्य का दर्जा वापस लेने की बात कही थी। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रचार के दौरान धारा 370 की बहाली पर बचते नजर आए थे।
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की बहाली के प्रस्ताव के दूसरे दिन विधानसभा पहलवानों का अखड़ा बन गया, जिसमें नेता एक दूसरे को मारने पर अमादा होते दिखे। इस दौरान कोई नेता किसी नेता का कॉलर पकड़ रहा है तो कोई नेता किसी का कुर्ता फाड़ रहा है, मंजर कुछ ऐसा था कि जैसे गांव में मुर्गियां लड़ाते वक्त होता था।
सदन अखाड़ा उस वक्त बना जब लंगेट से विधायक खुर्शीद अहमद शेख ने वेल में आकर अनुच्छेद 370 का बैनर लहराया। जम्मू-कश्मीर में नेता विपक्ष सुनील शर्मा ने जब इसका विरोध किया तो विधायकों के बीच में हाथापाई शुरू हो गई। जिसमें शामिल थे खुर्शीद अहमद, लोकसभा सांसद इंजीनियर राशिद के भाई, सज्जाद लोन, वहीद पारा जैसे नेता।
सदन में हुई इस हाथापाई कई नेता घायल भी हो गए। लड़ाई को शांत करने के बुलाए गए मार्शल जब बीजेपी नेताओं को ले जा रहे थे उस दौरान भी बीजेपी के नेता ‘विशेष दर्जा प्रस्ताव वापस लो’ के नारे लगा रहे थे।
क्या ये प्रस्ताव टकराव को देगा न्योता?:
उमर अबदुल्ला ने एक तरफ केंद्र सरकार और उपराज्य के साथ मिलकर काम करने का वादा किया था. लेकिन, धारा 370 को वापस लागु करने के उनके प्रस्ताव ने रिश्तों में गांठ जोड़ने का काम किया है।
बारामुला से सांसद इंजीनियर राशिद ने उमर अब्दुल्ला पर पीएम मोदी की कठपुतली बनने का आरोप लगाया था। तब इंजीनियर राशिद ने ये बयान दिया था कि, उमर अब्दुल्ला केवल वोट के लिए धारा 370 को वापस से लागू करने की मांग कर रहे हैं। अब इंजीनियर राशिद ने अपना बयान को थोड़ा मॉडिफाई कर लिया है उनका कहना है कि जिसने इसे छीना, उससे इसे फिर से लागू करने उम्मीद करना थोड़ा मूर्खता होगी।
एक तरफ ये मान भी लिया जाए कि धारा 370 पर प्रस्ताव को पास करना उमर अब्दुल्ला की कोई बड़ी मजबूरी रही होगी. लेकिन अब केंद्र सरकार के साथ उनके रिश्तों में मिठास बनी रहेगी ऐसी उम्मीद करना शायद गलत ही होगा।
जम्मू-कश्मीर के सदन में धारा 370 की बाहली के प्रस्ताव के पास होने के बाद सबसे बड़ा सवाल वो ये कि, उमर अब्दुल्ला ये किस मुंह से कहेंगे कि ताली दोनों हाथों से बजती है, अब तो दिल्ली में दिखने वाली चूहे-बिल्ली की लड़ाई हमें जम्मू-कश्मीर में भी देखने को मिल सकती है या फिर यूं कहें कि मिलने वाली है।