हमारे देश में अनेकों शिव मंदिर और अनेकों शिव धाम हैं. शिव मंदिर हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण और धार्मिक स्थल माने जाते हैं. भगवान शिव जिन्हें भोलेनाथ, त्रिपुरारी, शंकर और महादेव ऐसे अनेकों नाम से पूजा जाता है.
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जिन्हें इस संसार का संहारक और पुन:निर्माता महादेव को ही माना जाता है. शिव मंदिर ना ही सिर्फ भक्ति और आस्था का केंद्र होते है, बल्कि लोगों से जुड़ी श्रध्दा और आस्था का भी प्रतीक है.
शिव मंदिर हिन्दू मान्यताओं का एक अभिन्न अंग है, और ये हमारे जीवन के अध्यात्मिक पहलू को मजबूत करने का कार्य करते हैं. शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना और दर्शन करने से व्यक्ति को मानसिक शांति के साथ-साथ आत्मिक शांति की भी अनुभूति महसूस होती है.
ऐसी ही अनुभूति आपको भगवान के एक ऐसे मंदिर में मिलेगी जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसके दर्शन मात्र से आपको शारीरिक और मानसिक शांति का अनुभव प्राप्त होगा.
महादेव की आशीर्वाद स्थली मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई के मालाबार हिल्स के दक्षिण में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित बाबुलनाथ मंदिर जो गिरगांव चौपाटी के पास स्थित है, जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है. मुंबई शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक यह मंदिर जिसे बबूल के पेड़ के नीचे भगवान शिव के शिवलिंग रूप में पूजा जाता है. मंदिर के सभी स्तंभों और छत पर हिंदू पौराणिक कथाओं की कलाकृतियां मौजूद हैं.
सोलंकी राजवंश के समय में निर्मित यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है. मराठी वास्तुकला और जटिल नक्काशीदार आंतरिक सज्जा से निर्मित यह मंदिर आलौकिक सौन्दर्य को दर्शाता है.
शिवलिंग रूप में स्थापित शिव देवत्व और आस्था का प्रतीक
बाबुलनाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के आसपास हुआ था, जो आज के समय में भी लोगों की आस्था और भक्ति का प्रतीक बना हुआ है. अधिकांश शिव भक्त चाहे वो महाराष्ट्र के हों या देश-दुनिया के किसी भी कोने के क्यों ना हो यहां के दर्शन करने जरूर आते हैं. महाशिवरात्रि के अवसर पर हर साल लाखों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं, मारवाड़ी और गुजराती समुदाय के लोगों के लिए ये मंदिर विशेष मान्यता रखता है.
बाबुलनाथ मंदिर में प्रत्येक सोमवार को विशेष पूजा की जाती है, कहा जाता है, कि जो भक्त सच्चे मन से यहां भगवान भोले नाथ की आराधना करता है, उसकी सभी इच्छाएं महादेव जरूर पूरी करते हैं.
कैसे पड़ा रहस्यमयी मंदिर का नाम बाबुलनाथ मंदिर
ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार पांडुरंग नाम के सुनार के पास कई गाय हुआ करती थी. जिनकी देखभाल करने और चारा पानी करने के लिए पांडुरंग ने एक आदमी रख रखा था जिसका नाम बाबुल था. चरवाह बाबुल जब भी बांसुरी बजाता था, तो सारी गाए मंत्रमुग्ध होकर घास चरने लगती थीं और पांडुरंग की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त मात्रा में दूध देती थीं. एक दिन, पांडुरंग ने देखा कि उसकी एक के पास देने के लिए दूध नहीं है, तो इसका कारण कारण उसने बाबुल से पूछा.
बाबुल ने मालिक पांडुरंग से कहा कि इस गाय के साथ अक्सर ऐसा ही होता था. वह गाय अक्सर पहाड़ी पर एक खास स्थान पर अपना रास्ता बनाती और अपना दूध उस जमीन पर छोड़ देती थी. पांडुरंग को यह बात अविश्वसनीय लगी और इसके बारे में अधिक जानने के लिए गाय का चोरी-छुपे पीछा किया.
इसके बाद जमीन पर एक खास जगह पर गाय को दूध छोड़ता देख पांडुरंग और बाबुल हैरान हो गए। फिर दोनों ने इस रहस्य को जानने के लिए उस स्थान पर खुदाई शुरू कर दी. खुदाई करने के बाद उन्हें जमीन के नीचे एक शिवलिंग दबा हुआ मिला, श्रद्धा और भक्ति में, पांडुरंग ने इसी स्थान पर शिवलिंग को प्राथमिक देवता के रूप में मानकर एक मंदिर का निर्माण कराया. जिसके बाद इस मंदिर का नाम चरवाहे बाबुल के नाम से विख्यात हुआ.
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