देव स्थान का कोई ना कोई धार्मिक महत्व जरूर होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार हर युग में श्री हरि अलग- अलग रूप धारण करते है. और धरती पर अवतरित होते है. मान्यताओं में कहा गया है, कि श्री कृष्ण की लीलाओं को आज तक कोई मनुष्य क्या देवी- देवता भी नहीं जान पाया है. आज हम बात करने जा रहे है, भगवान विट्ठलकी जिनकी महिमा को भी कोई नहीं समझ पाया है.
पंडरपुर के पालक भगवान विट्ठल
हिंदू कथाओं के अनुसार लगभग छठवीं शताब्दी में पुंडलिक नाम का एक व्यक्ति का जन्म महाराष्ट्र के पंढरपुर में हुआ. पुंडलिक भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त होने के साथ- साथ अपने माता-पिता की सेवा भी सच्चे भाव से किया करता था. पुंडलिक का स्वभाव बहुत सरल, बोली में मिठास और सज्जन था.
भगवान विट्ठल का सखा रूप
कहा जाता है, कि भगवान कृष्ण को पंडुलिक का स्वभाव बहुत अच्छा लगता था. पंडुलिक के स्वभाव को देखकर भगवान श्री कृष्ण उससे मिलने धरती पर आने के लिए तैयार थे, तभी मां रूक्मणी जी ने उनसे कहा कि मैं भी आपके साथ चलूंगी.
भक्ति के आराध्य भगवान विट्ठल
जब भगवान कृष्ण और रूक्मणी के साथ पंडुलिक के पास दर्शन देने पहुंचे, तो उस समय पंडुलिक अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे, तब पंडुलिक बोले, हे भगवन ! अभी मैं अपने माता-पिता की सेवा कर रहा हूं तब तक आप इस ईंट पर खड़े होकर आपको थोड़ा इंतजार करना होगा. ये बात कहकर पंडुलिक फिर सेवा में लीन हो गए. श्री कृष्ण ने ऐसा ही किया, और दोनों हाथों को कमर पर रखकर उसी ईंट पर खड़े हो गए. ये देखकर रूक्मणी जी आश्चर्य चकित होकर उनके साथ खड़ी हो गई.
भगवान कृष्ण ने धारण किया मूर्ति रूप
जब पंडुलिक ने अपने माता-पिता की सेवा पूरी करके भगवान की ओर देखा तो भगवान कृष्ण और माता रूक्मणी मूर्ति रूप धारण कर चुके थे. तभी से पंडुलिक ने मूर्ति रूप में श्री कृष्ण और रूक्मणी जी की आराधना और सेवा करने लगे. जिसके बाद ईंट पर खड़े होने की वजह से भगवान कृष्ण का नाम विट्ठल पड़ा. क्योंकि मराठी भाषा में ईंट को विट कहा जाता है.
सच्ची भक्ति केवल भौतिक रूपों और आभूषणों में नहीं, बल्कि दिल से ईश्वर की उपासना में है. कहा जाता है, कि भगवान विट्ठल के दर्शन करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती हैं.
0 Comments