क्या हम भारतीयों का खून पानी बन चुका है?

क्या हम भारतीयों का खून पानी बन चुका है?

“जो भरा नहीं भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं” – कवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां उनकी दूरदर्शिता को साबित करती हैं। आप सोच रहे होंगे कैसे? तो बात ऐसी है कि बांग्लादेश कभी भारत का हिस्सा हुआ करता...