शक्ति पीठ हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण स्थल माने जाते हैं, जो देवी शक्ति या दुर्गा की उपासना के केंद्र होते हैं, शक्तिपीठों का विशेष महत्त्व तंत्र-मंत्र, पूजा-पाठ और धार्मिक यात्रा के संदर्भ से जुड़ा रहता है. शक्तिपीठों की पूजा के माध्यम से भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. शक्ति पीठों की उत्पत्ति “शिव और सती की कथा” के रूप में जाना जाता है.
पौराणिक कथानुसार, देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वार द्वारा अपने पति महादेव को अपमानित किए जाने के कारण आत्मदाह कर लिया था. इसके बाद भगवान शिव ने सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठा लिया और ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगे. देवी सती के शरीर के विभिन्न अंग जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्ति पीठों का निर्माण हुआ.
इन्हीं स्थानों को “शक्ति पीठ” कहा जाता है. शाकंभरी देवी शक्तिपीठ भी 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है. जिसके बारे में हम विस्तार से बात करेंगे.
शाकंभरी देवी शक्तिपीठ का स्वरूप
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में स्थित शाकंभरी देवी हिंदू धर्म में एक प्रमुख स्थानहैं, जिन्हें देवी दुर्गा का एक रूप माना जाता है. उनकी पूजा मुख्य रूप से खासकर उत्तर भारत में की जाती है. शाकंभरी जिसका अर्थ होता है “शाकों की देवी” या “वनस्पतियों की देवी”. शकंभरी देवी का पूजन विशेष रूप से ऋतुराज और कृषि संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है.
शाकंभरी देवी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और शांतिमय माना जाता है, वे आमतौर पर एक शाकाहारी देवी के रूप में पूजी जाती हैं, जिनके हाथों में फल, फूल, और शाक-सब्जियों का वास होता है. उनके दर्शन से व्यक्ति को शांति, समृद्धि, और जीवन में संतुलन की प्राप्ति होती है.
शाकंभरी देवी शक्तिपीठ की कथा
शाकंभरी देवी से जुड़ी एक प्रमुख कथा महाकाव्य पुराणों में मिलती है. मान्यता है कि जब पृथ्वी पर अकाल और भीषण संकट आया था, तो देवी शाकंभरी ने अपनी तपस्या के द्वारा देवताओं से प्रार्थना की और भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त किया. इसके बाद उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियों से पृथ्वी पर शाक, फल और अन्य खाद्य पदार्थों का पुनः प्रसार किया. इससे अकाल और भुखमरी का नाश हुआ, और पृथ्वी पर सुख-शांति का वास हुआ.
इस प्रकार, देवी शाकंभरी ने पृथ्वी पर अन्न और आहार का पुनर्निर्माण किया और धरती को पुनः जीवनदान दिया. दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में भी इस बात का उल्लेख है, कि जिस समय धरती पर वर्षा नहीं होगी, उस समय मां दुर्गा के शरीर शाकों की उत्तपत्ति होगी, जिससे सारे जगत का पालन-पोषण होगा. और वे मां शाकंभरी के नाम से विख्यात होंगी. शकंभरी देवी का महत्व न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह कृषि और आहार के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.
इसका वर्णन दुर्गा सप्तशती में भी है मां शक्ति के दर्शन मैं परिवार सहित कर चुकी हूं और इनसे जो भी मुराद मांगो वह पूरी होती है
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