रिटायर्ड जज की किताब ने खोला दरगाह में मंदिर होने का राज !

by | 28 Nov 2024, 10:28:pm

विश्व के तमाम मुल्कों में अमन और शांति का पैगाम देने वाली अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह एक बार फिर से सुर्खियों में है। क्योंकि इस बार दरगाह मे शिव मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। इसको लेकर कोर्ट में एक याचिका डाली गई। याचिकाकर्ता हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता हैं।  इन सबके बीच रिटायर्ड जज की एक किताब चर्चा का विषय बनी हुई है.

हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की किताब में क्या ?

1- किताब में दावा दरगाह से पहले मंदिर था

2- ब्राह्मण दंपति करते थे भगवान शिव की पूजा

3- साल 1911 में हरबिलास शारदा ने लिखी थी किताब

अजमेर शरीफ दरगाह की हकीकत

सूफी इस्लाम को मानने वाले राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह को सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक मानते हैं । यहां मुस्लिम संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है, जहां हर धर्म के लोग जियारत और अकीदत पेश करने आते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ख्वाजा कहां से आए थे और इस दरगाह का इतिहास क्या है ? लेकिन  उससे पहले अजमेर पर लिखी गई एक किताब का जिक्र करते हैं, जो यहां के हिस्टोरिकल फैक्ट को दर्शाती है। इसके चैप्टर 8 के पेज 82 से 89 तक अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह का इतिहास बताया गया है।  इसी पुस्तक में दरगाह की जगह एक मंदिर होने की बात कही गई है। इस मंदिर में भव्य पूजा किए जाने की भी बात लिखी गई है। ये किताब हिंदू सेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से न्यायाधीश मनमोहन चंदेल के सामने पेश की गई है।

किताब के पन्नों में दफन दरगाह के राज ?

दरअसल किताब में  इस बात का  जिक्र है कि यहां ब्राह्मण दंपती रहते थे। वे दरगाह स्थल पर बने महादेव मंदिर में पूजा-अराधाना करते थे। इसके अलावा कई और तथ्य हैं, जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां हिन्दुओं के ईष्ट देव महादेव का मंदिर था ।

अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास ?

ऐसा माना जाता है कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती पैगंबर मोहम्मद साहब के अनुयायी थे। उन्हें लोग ‘ख्वाजा गरीब नवाज’ के नाम से भी पुकारते हैं। वो एक फारसी इस्लामिक स्कॉलर थे। जिनका जन्म 1 फरवरी 1143 में अफगानिस्तान के हेरात प्रांत के चिश्ती शरीफ में हुआ था। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती सुल्तान इल्तुतमिश के शासन में भारतीय उपमहाद्वीप में आए थे, वो अपने मानवता के उपदेशों की वजह से काफी मशहूर हुए। यही वजह है कि हर धर्म के लोग उन्हें पसंद करते थे। उन्होंने अजमेर को अपना घर बना लिया और मृत्यु तक वो यहीं रहे ।

कब और किसने कराया दरगाह का निर्माण?

मिली जानकारी के मुताबिक सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज के सम्मान में मुगल शासक हुमायूं ने इस दरगाह का निर्माण करवाया था।दरगाह के अंदर विशाल चांदी के दरवाजों की एक श्रृंखला के जरिए प्रवेश किया जा सकता है। यहां सूफी संत की कब्र मौजूद है। संगमरमर और सोने की परत से बना, वास्तविक मकबरा चांदी की रेलिंग और संगमरमर के पत्थरों से सुरक्षित है।

अपने शासनकाल के दौरान मुगल सम्राट अकबर हर साल अजमेर की तीर्थयात्रा करते थे। उन्होंने और बादशाह शाहजहां ने दरगाह परिसर के अंदर मस्जिदें बनवाईं। अकबर की जियारत का सीन मशहूर फिल्म  ‘जोधा-अकबर’  में फिल्माया गया है। 1568 और 1614 में मुगल राजा अकबर और जहांगीर ने विशाल डेग दान में दी थीं। जो अभी भी यहां पर हैं।  ये दोनों डेगों का इस्तेमाल आज भी किया जाता है। इसमें चावल, घी, काजू, बादाम, चीनी और किशमिश की मदद से लंगर तैयार किया जाता है।

मुगल शासक अकबर पैदल आए थे दरगाह

अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह है। लोग यहां अत्यंत श्रद्धा के साथ मन्नत मांगने आते हैं और मुराद पूरी होने पर ख्वाजा साहिब का शुक्राना अदा भी करते हैं। अरावली की पहाड़ियों से घिरा अजमेर बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है। बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर आगरा से 437 किमी. पैदल ही चलकर ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह मे पुत्र प्राप्ति की कामना लिए आया था।

दरगाह पर सभी धर्मों के लोग आते हैं

अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हर तबके के चेहरे दिखाई देते हैं । चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। यहां अक्सर बॉलीवुड स्टार्स अपनी फिल्मों की सफलता के लिए दुआ मांगने आते रहे हैं। दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे सर्वधर्म सद्भाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है।

दरगाह पर नामचीन हस्तियों ने चढ़ाए चादर

ख्वाजा की मजार पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, बीजेपी के दिग्गत नेता स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, देश की पहली महिला पीएम इंदिरा गांधी, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत कई नामचीन और मशहूर शख्सियतों ने अपना मत्था टेका है। इसके साथ ही ख्वाजा के दरबार में अक्सर बड़े-बड़े राजनेता एवं सेलिब्रिटीज आते रहते हैं और अपनी अकीदत के फूल पेश करते हैं और मन्नत की चादर चढ़ाते हैं।

अजमेर शरीफ दरगाह की बनावट

इतिहासकारों की माने तो सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने करीब 1465 में अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण करवाया था। वहीं बाद में मुगल सम्राट हुंमायूं, अकबर, शाहजहां और जहांगीर ने इस दरगाह की मरम्मत करवाई। इसके साथ ही यहां कई संरचनाओं एवं मस्जिद का निर्माण भी किया गया। इस दरगाह में प्रवेश के लिए चारों तरफ से बेहद भव्य एवं आर्कषक दरवाजे बनाए गए हैं जिसमें निजाम गेट, जन्नती दरवाजा, नक्कारखाना, बुलंद दरवाजा शामिल हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर बेहद सुंदर शाहजहानी मस्जिद भी बनी हुई है। यह मस्जिद मुगलकालीन वास्तुकला की एक नायाब नमूना मानी जाती है। इस आर्कषक मस्जिद की इमारत में अल्लाह के करीब 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं। इसके अलावा यहां शफाखाना, अकबरी मस्जिद भी हैं, इस मस्जिद में वर्तमान में मुस्लिम समुदाय के बच्चों को इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान की शिक्षा भी दी जाती है।

विवाद की वजह

दरगाह के बाहर बने गुंबदों को देखे तो वो हिंदू परंपरा को दर्शाता है। जिसका जिक्र 1911 में लिखी गई हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज हरबिलास शारदा की किताब के पन्नों में दफन है। जिसे देखते हुए हिन्दू सेना ने माननीय कोर्ट के सामने साक्ष्य रखे और कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया है। अब आने वाले वक्त में पुरातत्व विभाग अवशेष को खंगालेगा और कोर्ट के सामने अपनी पड़ताल का पूरा ब्यौरा देगा ।

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