तीनों लोकों के देव जो भोले भी हैं और काल भी हैं. जिनका ना तो अंत है, और ना ही आरंभ. जिनकी भक्ति आम लोग भी करते हैं, और औघड़ दानी भी. भगवान शिव का व्यक्तित्व अत्यधिक विशाल और रहस्यमय है, जो उन्हें अन्य देवताओं से अलग करता है. महादेव का स्वरूप और उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण वे साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजे जाते हैं. भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्ति, तपस्या और साधना की आवश्यकता होती है.
आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो महाराष्ट्र के समुद्र तट पर स्थित है. जहां भगवान के शिव के लिंग रूपी स्वरूप के दर्शन मात्र से भक्तों को सुख और शांति की प्राप्ति हो जाती है.
समुद्र तट पर स्थित कुंकेश्वर मंदिर
भगवान शिव का यह पवित्र धाम महाराष्ट्र राज्य के सिंधुदुर्ग जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है. यहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. कुंकेश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और शांति भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है.
कुंकेश्वर में दर्शन से होगा आंतरिक शक्ति का अनुभव
‘कुंकेश्वर’ शब्द जिसका अर्थ है, ‘कुंभ’ अर्थात् कलश और ‘ईश्वर’, जो यह बताता है, कि यह स्थान समुद्र के पवित्र जल के द्वारा अभिषेकित है. यहां आने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है, कि मंदिर के आस-पास स्थित सुंदर समुद्र तट भी पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे यह धार्मिक यात्रा के साथ-साथ एक बेहतरीन पर्यटन स्थल भी बन जाता है।
कुंकेश्वर मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक कथा
समृद्धि, प्रेम और तात्त्विक ज्ञान से भरपूर कुंकेश्वर मंदिर के इतिहास से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं. पुरानी कथाओं के अनुसार एक ईरानी नाविक का जहाज़ समुद्र के तट से दूर एक तेज तूफान में फंस गया था. तूफान में फंसे नाविक को समुद्र किनारे पर एक जलती हुई रोशनी दिखाई दी. यह रोशनी एक जलते हुए एक दीपक की थी. वह ईरानी नाविक भयंकर तूफान से बचने के लिए बचने के लिए उस रोशनी की ओर देखकर प्रार्थाना करने लगा.
प्रार्थना करते हुए नाविक ने उस रोशनी से वादा किया, कि वह वहां एक मंदिर बनवाएगा. कुछ समय बाद, उसका जहाज बिना किसी परेशानी के समुद्र तट पर आ गया. वादे के मुताबिक, नाविक ने फिर एक मंदिर बनाना शुरू किया. मंदिर का निर्माण कराते समय नाविक को पता चला कि पहाड़ी पर पहले से ही एक शिवलिंग था. क्योंकि नाविक गैर-हिंदू था, तो उसने सोचा कि मंदिर बनाने के बाद उसका धर्म उसे स्वीकार नहीं करेगा.
इसलिए मंदिर बनवाने के बाद उसने मंदिर की चोटी से आत्महत्या कर ली. लेकिन आज के समय भी मंदिर परिसर में, नाविक की याद में बनाई गई एक समाधि भी देखी जा सकती है.
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