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आखिर क्या है यूपी के शहर “नोएडा” का इतिहास और क्या है मिथक?

उत्तरप्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में स्तिथ नोएडा अपने आप में ही मशहूर है यहाँ बसे बिल्डिंग्स और मॉल्स लोगों को इस शहर की तरफ आकर्षित करते है। दिल्ली-एनसीआर में शामिल नोएडा शहर देश के हाईटेक शहरों में से एक है। नोएडा का पूरा नाम ( नवीन ओखला औद्योगिकी विकास प्राधिकरण) है। यूपी में बसा यह शहर विदेश में बसे दुबई का एहसास कराता है।

कब पड़ा इसका नाम ” नोएडा”

आपको बता दे कि साल 1972 में दिल्ली में जनसंख्या का दबाव बढ़ने लगा था और दिल्ली से बाहर आने वाले लोगों में अनियंत्रण होने का खतरा बढ़ गया था उस समय यमुना-हिंडन-दिल्ली बॉर्डर पर बसे 50 गांवो को रेगुलेटेड एरिया घोषित किया गया जिसका फैसला 7 मार्च 1972 को लिया गया। यह घोषणा यूपी रेगुलेशन ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशन एक्ट 1950 के तहत की गई थी। साल 1975 में जब इमरजेंसी लग गई थी उस दौरान यूपी इंडस्ट्रियल एक्ट 1976 के तहत नोएडा को घोषित किया गया बता दे की नोएडा का जन्म इमरजेंसी में हुआ था। नोएडा का नाम इस शहर को बसाने वाली न्यू ओखला इंडस्ट्रियल अथॉरिटी द्वारा गठित की गई अथॉरिटी के नाम पर पड़ा था। NOIDA का नाम बदलने की मांग कई बार की गई परंतु लोगों को नोएडा नाम से ही प्रेम हो गया और यह नाम बहुत पॉपुलर हो गया।

संजय गांधी द्वारा दिए आइडिया पर बना हाईटेक शहर

साल 1976 में इमरजेंसी के दौरान हजारों लोग जेल में बंद कर दिए गए थे और कानून के तहत लगातार गिरफ्तारियां जारी थी। ऐसे में आपातकाल के दौरान जब संजय गांधी और उस समय के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जब लखनऊ से दिल्ली लौट रहे थे तब संजय गांधी ने विमान से दिल्ली के बाहर यमुना के किनारे खेतों का इलाका देखा तभी उन्होंने सीएम नारायण दत्त तिवारी को इंडस्ट्रियल विकास के लिए एक शहर बनाने का आइडिया दिया। संजय गांधी यूपी में एक ऐसा शहर चाहते थे जहां औद्योगिकी विकास हो सके और साथ ही दिल्ली की सारी यूनिट्स वहां शिफ्ट की जा सके ताकि दिल्ली का प्रदूषण स्तर कम हो सके। संजय गांधी द्वारा दिए गए प्रस्ताव को मुख्यमंत्री टाल न सके और उन्होंने एक अथॉरिटी का गठन किया जिसका नाम न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी रखा गया। नोएडा निर्माण के लिए सभी फाइल्स लखनऊ से तैयार हुई और साल 1976 में इसे मंजूरी दे दी गई।

इतिहास से भी जुड़ा है यूपी में बसा ये शहर

नोएडा गोल्फ कोर्स के परिसर में मौजूद सेना और ब्रिटिश आर्मियो के बीच हुए निर्णायक युद्ध का स्मारक आज भी यहां प्रचलित है जो ब्रिटिश जनरल गेरोड लेक की यादों को भी दर्शाता है। इसे जीतगढ़ स्तंभ भी कहा जाता है। यहाँ बसे दनकौर में द्रोणाचार्य और बिसरख में रावण के पिता विश्रव ऋषि का प्राचीन मंदिर आज भी प्रचलित है। 1919 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राम प्रसाद मैनपुरी में षड्यंत्र करके फरार हुए थे और इसी शहर में आकर भूमिगत हुए थे। भगत सिंह ने भी यहां के नलगढ़ा गांव में भूमिगत रहते हुए बम-परीक्षण किए थे।

नोएडा एक “मिथक” दृष्टिकोण

आपको बता दे की राजनीति में नोएडा को मिथक के रूप में भी बहुत प्रसिद्ध माना जाता है ऐसा माना जाता है कि जो भी नेता प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नोएडा का दौरा करते है उनकी कुर्सी चली जाती है। इस मिथक का भी इतिहास से लेनदेन है। मिथक में शामिल हुए 1988 के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने नोएडा के एक प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था जिसके बाद उनकी सरकार गिर गई। साल 1989 की बात करे तो मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी सेक्टर-11 में एक पार्क का उद्घाटन करने पहुंचे थे तो उनकी भी कुर्सी चली गई। साल 1998 में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी नोएडा के एक प्रोग्राम में पहुंचे उनकी सरकार गिर गई। 2004 में स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचे मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को भी अपनी कुर्सी गवानी पड़ी। 2011 में मायावती नोएडा आई जिसके बाद चुनाव में सत्ता उनके हाथ न लगी। आपको बता दे कि उसके बाद 2017 तक उत्तरप्रदेश का कोई भी मुख्यमंत्री नोएडा नहीं आया परंतु 2017 में सीएम योगी आदित्यनाथ इस मिथक को तोड़कर नोएडा गए और अभी भी उनका नोएडा दौरा जारी रहता है।

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